दाग़
जिस्म के बाज़ार का मेहज़ एक समान हूं मैं;
जो बस इस्तेमाल कर छोड़ दिया जाता है।
सफेद चादर पर लगे उस दाग़ सी पहचान है मेरी;
चाहे किसी की भी पनाह ले लूं,
हज़ार तोहमत लगा,
दर्ज़ा मुझे दाग़ का ही दिया जाता है।
ऐब इस जहां के सहते सहते,
अब ये जिस्म हंसना भूल गया है,
प्यार से जब कोई थाम लेे हाथ ,
वो एहसास कितना हसीन होता है,
ये दिल वो एहसास भी खो चुका है,
लबों पर सुर्ख लाल हसीं है,
पर रूह मेरी मुस्कुराना भूल गई है।
आंखों में ये गहरा सुरमा रिझाता बहुत है,
पर ये आंखें मेरी सपने सजाना भूल गईं हैं।
सितारों के छांव में चाही थी ज़िन्दगी ,
अब बेजान बिस्तर कि तरह ओरों की रात साजाती हूं,
गंदगी लोग अपनी छोड़ जाते हैं,
और दाग़ मैं कहलाती हूं।
- अवनिता
जिस्म के बाज़ार का मेहज़ एक समान हूं मैं;
जो बस इस्तेमाल कर छोड़ दिया जाता है।
सफेद चादर पर लगे उस दाग़ सी पहचान है मेरी;
चाहे किसी की भी पनाह ले लूं,
हज़ार तोहमत लगा,
दर्ज़ा मुझे दाग़ का ही दिया जाता है।
ऐब इस जहां के सहते सहते,
अब ये जिस्म हंसना भूल गया है,
प्यार से जब कोई थाम लेे हाथ ,
वो एहसास कितना हसीन होता है,
ये दिल वो एहसास भी खो चुका है,
लबों पर सुर्ख लाल हसीं है,
पर रूह मेरी मुस्कुराना भूल गई है।
आंखों में ये गहरा सुरमा रिझाता बहुत है,
पर ये आंखें मेरी सपने सजाना भूल गईं हैं।
सितारों के छांव में चाही थी ज़िन्दगी ,
अब बेजान बिस्तर कि तरह ओरों की रात साजाती हूं,
गंदगी लोग अपनी छोड़ जाते हैं,
और दाग़ मैं कहलाती हूं।
- अवनिता